कौन है भारतीय नागरिक? नागरिकता पाने और छोड़ने के नियम क्या हैं?

1 min read
कौन है भारतीय नागरिक? नागरिकता पाने और छोड़ने के नियम क्या हैं?

कौन है भारतीय नागरिक? नागरिकता पाने और छोड़ने के नियम क्या हैं?

नागरिकता क्या है? (Definition of Citizenship in Hindi)

नागरिकता एक देश की सरकार और उस देश में रहने वाले व्यक्तियों के बीच के सम्बन्ध को परिभाषित करती है. किसी भी देश की वैध नागरिकता उस देश के संविधान और सरकार द्वारा दिए गए मूल अधिकारों, सामाजिक, राजनीतिक अधिकारों एवं सुविधाओं का उपयोग करने की शक्ति प्रदान करती है.

किस व्यक्ति को नागरिक माना जाए और किसे नहीं, इसको लेकर हर देश के अपने अलग-अलग नियम क़ानून होते हैं. ज्यादातर देशों में नागरिकता संबंधी नियम-क़ानून बहुत हद तक एक जैसे ही होते हैं लेकिन उनसे जुड़े कुछ प्रावधानों को परिस्थिति अनुसार परिभाषित किया जाता है. साथ ही सभी देशों के द्वारा उस देश की नागरिकता पाने और उसे छोड़ने से संबंधित नियम भी तैयार किये जाते हैं.

इस समय भारत सरकार द्वारा संसद में पास किये गए नागरिकता संशोधन अधिनियम -2019 (Citizenship Amendment Act -2019) और उसके साथ ही NRC (राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर) बनाने की घोषणा के बाद चारों तरफ नागरिकता को लेकर चर्चा, विरोध और समर्थन का माहौल है. ऐसे में हमने इस पोस्ट के जरिए बताने की कोशिश की है कि भारतीय संविधान में नागरिकता के बारे में क्या लिखा गया है. हमने यह भी एक्सप्लेन किया है इंडियन सिटीजनशिप पाने और उसे छोड़ने के नियम क्या हैं

भारतीय नागरिकता क्या है?

भारतीय संविधान में नागरिकता से जुड़े स्पष्ट नियम बनाए गए हैं. साथ ही संसद द्वारा समय-समय पर नागरिकता से संबंधित क़ानून पारित किये हैं. भारतीय नागरिक, भारत के संविधान द्वारा दिए गए सभी मूल अधिकार, लोकतांत्रिक और सामाजिक अधिकारों का उपयोग करने का अधिकार रखता है.

भारतीय संविधान धर्म, जाति, वर्ग, नस्ल या आर्थिक स्थिति के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करता है और नाही किसी को नागरिकता देता है.

15-अगस्त-1947 को स्वतंत्र होने के बाद भारत एक सार्वभौमिक राष्ट्र बन गया और सभी भारतीय  Indian Independence Act 1947 के अंदर आ गए. जब 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया तो उसमें नागरिकता के बारे में स्पष्ट नियम बनाए गए. साथ ही संविधान के Article-11 के अंतर्गत सरकार को Citizenship से जुड़े क़ानून बनाने के अधिकार भी दिए.

आर्टिकल-11 की सहायता से भारतीय संसद ने सन 1955 में नागरिकता से जुड़ा पहला क़ानून Indian Citizenship Act, 1955 (भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955) लागू किया. उसके बाद इस क़ानून में समय समय पर कई संशोधन किये गए जो 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और अभी हाल ही में  2019 में लागू हुए.

ज्यादातर देशों में नागरिकता को दो तरीकों से परिभाषित किया जाता है. जो इस प्रकार हैं.

  • Citizenship By Birth (जन्म के आधार पर नागरिकता) जिसके अनुसार जिस व्यक्ति का जन्म उस देश के अधिकार क्षेत्र में हुआ है वो स्वतः: ही उस देश का नागरिक हो जाता है चाहे उसके माता-पिता का जन्म कही भी हुआ हो.
  • Citizenship By Blood (रक्त संबंधों के अनुसार नागरिकता) – जिसके अनुसार अगर किसी व्यक्ति के माता-पिता में से दोनों या कोई एक अगर उस देश का नागरिक है तो वह व्यक्ति भी देश का नागरिक माना जाता है.

भारत का नागरिकता क़ानून इन दोनों तरीकों का मिला जुला रूप है. नीचे हमने संविधान लिखित नागरिकता नियमों, भारतीय नागरिकता अधिनियम-1955 के अंतर्गत बनाए गए नियमों और समय-समय पर उसमें हुए संशोधनों को विस्तार से समझाने की कोशिश की है.

संविधान लागू करते समय भारतीय नागरिकता के क्या प्रावधान थे?

भारतीय संविधान के लागू करते समय उसमें आर्टिकल 5 से लेकर आर्टिकल 11 के अंतर्गत भारतीय नागरिकता की पात्रता एवं सरकार को नागरिकता से जुड़े अधिकारों का वर्णन किया गया है, संविधान के अनुच्छेद 5 से लेकर अनुच्छेद 11 में लिखे प्रावधान इस प्रकार हैं:

संविधान का अनुच्छेद -5 क्या कहता है?

संविधान के अनुच्छेद 5 के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसका जन्म भारत के अंदर हुआ है या फिर उसके माता-पिता में से कोई एक भारत का नागरिक है तो वह व्यक्ति भी भारत का नागरिक माना जाएगा. इस आर्टिकल के अंतर्गत सन 1945 से भारत में रह रहा व्यक्ति (26-जनवरी-1950 से 5 साल पहले से) भी भारत का नागरिक होगा.

2. संविधान का अनुच्छेद -6 क्या कहता है?

संविधान का अनुच्छेद-6 बँटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आए शरणार्थियों/प्रवासियों की नागरिकता के बारे में नियम बनाता है. जो प्रवासी 19 जुलाई, 1948 से पहले भारत आ गए थे उन्हें भारत की नागरिकता देता है. जो लोग 19 जुलाई, 1948 के बाद भारत आए उनको अपने आने के 6 महीने के बाद नागरिकता लेने के लिए रजिस्ट्रेशन कराने का प्रावधान है.

 3. संविधान का अनुच्छेद -7 के अनुसार क्या प्रावधान हैं?

संविधान का Article-7 उन लोगों का जिक्र करता है जो बँटवारे के समय (मार्च-1947 के बाद) पाकिस्तान चले गए थे लेकिन बाद में भारत वापस लौट आए थे. ऐसे लोग जो सेटलमेंट परमिट के साथ भारत वापस लौटे थे उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा अगर वह भारत में 6 महीने रहने के बाद नागरिकता के लिए आवेदन करता है.

 4. संविधान का अनुच्छेद -8 के अनुसार क्या प्रावधान हैं?

इस अनुच्छेद के अनुसार विदेश में रहने वाले ऐसे व्यक्ति जिसके माता-पिता या दादा-दादी में से कोई एक भारतीय नागरिक हो तो वह व्यक्ति भी इंडियन सिटीजनशिप के लिए आवेदन कर सकता है. इसके लिए उस व्यक्ति को अपने रहने वाले देश में भारतीय दूतावास के जरिए आवेदन करना होगा.

  • संविधान के अनुच्छेद 10 और 11 के अनुसार संविधान भारत सरकार को नागरिकता से जुड़े प्रावधानों को बदलने और नए नागरिकता क़ानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है. इन अनुच्छेदों के अनुसार भारतीय सरकार को किसी की नागरिकता रद्द करने का भी अधिकार मिल जाता है.
  • संविधान का अनुच्छेद 9 उन लोगों के लिए है जो किसी अन्य देश की नागरिकता स्वीकार करते हैं. इस अनुच्छेद के अनुसार अगर कोई व्यक्ति भारत की साथ-साथ किसी दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार करता है तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः: ही ख़त्म हो जाएगी.

नागरिकता अधिनियम -1955 के अनुसार भारतीय नागरिकता से जुड़े नियम (About Indian Citizenship Act 1955 in Hindi)

संविधान के आर्टिकल -11 से मिले अधिकार का प्रयोग करके भारत सरकार ने 1955 में भारतीय नागरिकता अधिनियम -1955 पारित किया. इस अधिनियम के अंतर्गत नागरिकता पाने और छोड़ने के नियमों को और अधिक स्पष्टता के साथ उल्लेखित किया गया.

Indian Citizenship Act 1955 मूलतः चार प्रकार से भारतीय नागरिकता को परिभाषित करता है जो नीचे दिए गए हैं. हमें इन नियमों के साथ समय-समय पर हुए संशोधनों को भी इनके साथ ही समझाया है, जिससे आप आज के समय में नागरिकता से जुड़े जो नियम प्रचलन में हैं उन्हें पूरी तरह से समझ सकें.

  1. जन्म के आधार पर नागरिकता
  2. मूल निवास/वंश के आधार पर नागरिकता
  3. पंजीकरण द्वारा नागरिकता
  4. प्राकृतिक आधार पर नागरिकता

जन्म के आधार पर नागरिकता

नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार 1 जनवरी, 1950 को या उसके बाद भारत में जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा.

#संशोधन:

  • संशोधन 1986: 1955 के एक्ट में माता पिता की स्थिति को और स्पष्ट करने तथा 1950 से 1987 के बीच जन्मे लोगों को शामिल करने के लिए इसमें 1986 में संशोधन किया गया और जोड़ा गया कि 1 जनवरी, 1950 के बाद जन्मा कोई भी व्यक्ति भारत का नागरिक होगा अगर उसके माता-पिता में से कोई एक या दोनों पहले से भारत का नागरिक हो.
  • संशोधन 2003: सन 2003 के संशोधन में जोड़ा गया कि 3 दिसंबर, 2004 के बाद जन्मा व्यक्ति भारत का नागरिक होगा अगर उसके माता-पिता में से दोनों भारतीय नागरिक हों या फिर कोई एक भारतीय नागरिक हो और दूसरा अवैध रूप से भारत में प्रवेश नहीं किया हो.

मूल निवास/वंश के आधार पर नागरिकता

नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार इस नियम के अंतर्गत भारत के बाहर पैदा हुआ व्यक्ति भी भारत का नागरिक होगा अगर उसके पिता भारतीय होगा.

#संशोधन:

  • वंश के आधार पर नागरिकता नियम में 1992 में संशोधन करके जोड़ा गया कि भारत के बाहर पैदा हुआ कोई व्यक्ति भारतीय नागरिक होगा अगर उसके माता पिता में से कोई भी एक भारतीय हो.
  • इसके बाद 2003 में फिर से संशोधन किया गया कि भारत के बाहर पैदा हुए व्यक्ति को जिसके माता पिता में से कोई एक भारतीय हो उसे केवल तभी नागरिकता मिलेगी अगर उसके जन्म के 1 साल के अंदर उसका पंजीकरण भारतीय दूतावास में कराया गया हो.

पंजीकरण द्वारा नागरिकता

रजिस्ट्रेशन के द्वारा भी भारतीय नागरिकता मिल सकती है अगर उसका किसी तरह का सम्बन्ध भारतीय नागरिक के साथ हो. जैसे कि किसी का विवाह किसी भारतीय नागरिक से हुआ हो और जिस नागरिक के साथ शादी हो रही है वह 5 साल पहले से भारत का नागरिक हो.

प्राकृतिक आधार पर नागरिकता

कुछ ऐसे लोग जो किसी भी तरह से भारत के साथ जुड़े हुए नहीं हैं लेकिन वो भारत की नागरिकता पाने चाहते हैं तो वह लोग भी कुछ शर्तों को पूरी करने के बाद भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं. कोई भी व्यक्ति जो 11 साल तक भारत में रहा हो साथ में आवेदन करने से पहले लगातार 12 महीने तक भारत में रह रहा हो और वह गैर-कानूनी तरीके से इंडिया में प्रवेश नहीं किया हो तो उसे सरकार नागरिकता देने का निर्णय ले सकती है.

भारत सरकार किसी भी आवेदन को रिजेक्ट या स्वीकार करने का अधिकार रखती है. 

 # संशोधन: 

  • अभी नागरिकता संशोधन अधिनियम-2019 के द्वारा पाकिस्तान, बंग्लादेश और अफग़ानिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों (मुस्लिमों को छोड़कर) के लिए 11 साल रहने की शर्त को घटाकर 5 साल कर दिया है.

कोई भी व्यक्ति जो गैर-कानूनी तौर पर भारत में प्रवेश किया हो या अवैध प्रवासी हो उसे किसी भी प्रकार भारतीय नागरिकता नहीं मिल सकती है.

कोई भी व्यक्ति जो गैर-कानूनी तरीके से किसी आधिकारिक दस्तावेज जैसे कि VISA और Passport के बिना भारत में प्रवेश किया हो या उसकी वीज़ा अवधि ख़त्म होने के बाद भी भारत में रुक गया हो उसे अवैध प्रवासी कहा जाता है.

अवैध प्रवासियों को लेकर कई क़ानून हैं जैसे कि The Foreigners Act, 1946 और The Passport (Entry into India) Act, 1920. इन कानूनों के तहत अवैध तौर पर रह रहे प्रवासियों को या तो जेल भेजा जा सकता है या वापस उसके देश डिपोर्ट किया जा सकता है.

ऊपर दिए गए नियमों के इतर कुछ और भी नियम हैं जिनके अनुसार लोगों को भारतीय नागरिकता दी जा सकती है.

  • अगर किसी क्षेत्र को भारत सरकार अपने देश में मिला लेती है तो उस क्षेत्र के लोगों को भारत की नागरिकता दे दी जाती है.
  • भारत सरकार कुछ विशिष्ट लोगों को जिन्होंने साहित्य, कला, विज्ञान, मानवता जैसे क्षेत्रों में उत्कृष्ट काम किया उन्हें अपनी स्वेच्छा से भी नागरिकता दे सकती है.

भारतीय नागरिकता छोड़ने या रद्द करने के क्या नियम हैं?

भारतीय नागरिकता अधिनियम के द्वारा भारतीय नागरिकता रद्द करने के भी नियम बनाए गए हैं. उनके कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं.

  1. स्वैच्छिक त्याग: कोई भी व्यक्ति एक एप्लीकेशन देकर अपनी इच्छा से भारतीय नागरिकता छोड़ सकता है.
  2. दोहरी नागरिकता होने पर टर्मिनेशन: भारत का संविधान दोहरी नागरिकता को वैध नहीं मानता है. अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश की नागरिकता धारण करता है तो उसकी भारतीय नागरिकता निरस्त कर दी जाएगी.
  3. नागरिकता छीन कर: भारतीय सरकार कुछ विशेष परिस्थितियों में किसी भी व्यक्ति की नागरिकता समाप्त कर सकती है. जैसे कि:
  • अगर किसी व्यक्ति ने सरकार के साथ धोखा करने या देश को नुक्सान पहुँचाने के मकसद से नागरिकता हासिल की हो.
  • अगर कोई व्यक्ति देश के खिलाफ आपराधिक और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्त पाया जाए.
  • अगर कोई व्यक्ति देश के संविधान या क़ानून के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं करता हो.

भारत सरकार ने विदेशी नागरिकों को कुछ विशेष प्रकार की नागरिकता देने का भी प्रावधान किया है जो असल में पूर्ण नागरिकता नहीं होती है लेकिन ऐसे नागरिक कुछ विशेष अधिकारों का फायदा सकते हैं. ऐसे नागरिकों को  Overseas Citizens of India कहा जाता है.

प्रवासी भारतीय नागरिकता क्या है? (Overseas Citizenship of India)

चूंकि भारतीय संविधान दोहरी नागरिकता को मान्य नहीं करता है इसलिए 2005 में एक संशोधन द्वारा Overseas Citizenship of India का प्रावधान लाया गया. इसके अनुसार भारतीय मूल के लोग जो विदेशी नागरिक हैं वो ओवरसीज नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं.

ओवरसीज नागरिकता कुछ विशेष प्रकार के अधिकार देती है जैसे कि पूरे जीवन के लिए वीज़ा मिलना, विदेशी लोगों के लिए बने क़ानूनों से छूट मिलना आदि. ओवरसीज़ सिटीजनशिप वोट डालने या ज़मीन खरीदने जैसे अधिकार नहीं देती है. 

इस पोस्ट में हमने आपको भारतीय नागरिकता से जुड़े सारे नियमों और क़ानून के बारे में विस्तार से समझाया है. अगर आपके मन में इस पोस्ट से संबंधित कोई भी सवाल है तो आप बे-झिझक कमेन्ट सेक्शन में पूछ सकते हो.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *