जीरो की खोज किसने की 0 ki khoj kisne ki

जीरो की खोज किसने की 0 ki khoj kisne ki

दोस्तों, आप लोगों ने गणित के दुनिया में 0 का नाम तो अवश्य सुना होगा। मगर क्या आपने कभी यह जानने की कोशिश की है, कि 0 की खोज किसने की थी ?

अगर आपका सवाल ना है, तो आप हमारे इस लेख को अवश्य पढ़ें क्योंकि इस लेख में हमने इसी टॉपिक पर विचार विमर्श करने वाले है,  तो चलिए शुरू करते हैं।

जीरो का खोज किसने किया 0 ki khoj kisne ki

0 की खोज महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने की थी और महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त भारत के ही रहने वाले थे। 0 को आम भाषा मे शून्य, नील, इत्यादि भी कहा जाता है।

क्या आप को मालूम है, कि प्राचीन समय मे 0 का उपयोग कहाँ किया जाता था ?

अगर आपका जवाब ना है, तो हम आपकी जानकारी के लिए बता दे, कि प्राचीन समय मे भारत के प्राचीन मंदिरों के पुरातत्वों और ग्रंथों और काव्यों जैसे चीज़ों में 0 का उपयोग किया जाता था।

ऐसे तो 0 हमारे ऐतिहासिक ग्रंथों में लगभग 5वि सदी में पूर्ण रूप से विकसित था। लिखे हुए ग्रन्थो और काव्यों में यह भी पाया गया की बेबीलोन की सभ्यता जीरो का इस्तेमाल स्थान-धारक के रूप में किया करती थी।

जीरो क्या है ? ( What Is Zero In Hindi )

“ 0 ” जीरो एक गणितीय अंक है। यह संख्याओं का पूर्णांक भी है। किसी भी संख्या को जीरो से गुना करने पर शून्य ही प्राप्त होता है। कही कही पर जीरो का Value कुछ नही माना जाता है और कही कही पर जीरो की Value बहुत आवश्यक मानी जाती है।

अगर किसी संख्या को जीरो से घटाए या जोड़ा जाए, तो वही संख्या पुनः हमे प्राप्त होती है।

किसी भी संख्या के आगे जीरो का प्रयोग किया जाए, तो उसका मान पहले जितना ही रहता है, मगर किसी भी संख्या के पीछे जीरो लगाने में उस संख्या का मान विशेष रूप से बढ़ जाती है।

जैसे कि :-

001  =  1  जीरो का उपयोग किसी संख्या के आगे करने पर

100  =  100 जीरो का उपयोग किसी संख्या के पीछे करने पर

जीरो गणित का बहुत महत्वपूर्ण अंक है, इसके बिना कोई भी Math अधूरा सा लगता है। आमतौर पर इसका Value इसके प्रयोग पर निर्भर करता है।

Math में जीरो का प्रयोग जिस जगह पर किया जाता है, उसका मतलब भी वैसा ही निकलता है। तो कुछ इस प्रकार से जीरो होता है।

जीरो का प्रचलन किस प्रकार हुआ था ?

अगर हम जीरो की प्रचलन की बारे में बात करे तो, भारत में ज़ीरो का पहला प्रचलन 628 वी वर्ष में हुआ था, फिर उसके बाद लगभग  8वि सदी में अरब देशों में जीरो तेजी से प्रसार हुआ, जहाँ पर इस जीरो अंक को ‘ 0 ‘ का आकार मिला।

दोस्तों, इसे प्रचलित करने वाले एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे, जिनका नाम मुहम्मद अल-ख़्वारिज़्मी था।

इन्होंने ( 780 – 850 ) वर्ष के अंतराल में एक पुस्तक लिखी थी,  जिसका नाम ‘ हिन्दू संख्या पद्धति ” था। और इस किताब मे जीरो का उपयोग किया गया था।

इस किताब को अरबी भाषा में लिखा गया था और इसका नाम अरबी में ‘ अल हिन्द ’ लिखित था । पुरे अरब में जीरो विकसित होने के बाद लगभग 12 वि सदी में यूरोप के कुछ देशों में भी जीरो जा पहुंचा था।

जहां यूरोप ने अपने गनित्या सिस्टम में इसे मिला कर के गणित क्षेत्र में काफी अत्यधिक सुधार लाया। बाद में 12वि शताब्दी के अंत होते होते लगभग पुरे दुनिया में शून्य यानि जीरो को अमान्य संख्या के रूप में अपनाया गया और इसका प्रचलन कुछ इस प्रकार से हुआ।

जीरो का आविष्कार कब और कहां हुआ था ?

ऊपर हमने आपको 0 ki khoj kisne ki के बारे में बताया, अब जीरो का आविष्कार कब और कहां हुआ था ? के बारे में जानते है।

जीरो के आविष्कार होने से काफी पहले ही जीरो को कई प्रतीकों में स्थान धारक के रूप में उपयोग किया जा रहा था।

तो ऐसे में यह सटीक रूप से नही कहा जा सकता, कि जीरो का आविष्कार कब और किस ईस्वी में हुआ था।

लेकिन कुछ इतिहासकारों के हिसाब से 628 ईस्वी में महान गणितज्ञ ‘ ब्रह्मगुप्त ‘ जी ने जीरो के सिद्धांतो और  मतलबो को सही तरह से उपयोग किया और उसके महत्व को सही तरह से दर्शाया।

जीरो का इतिहास ( History Of 0, 0 Ki Khoj Kisne Ki 

अगर हम जीरो के इतिहास के बारे में बात करे तो, प्राचीन समय यानि 4000 वर्ष पहले हिंदुस्तान में हिंदी के कई सारी हस्तलिपियों के गणित शास्त्र में खाली जगह पर जीरो का उपयोग किया जाता था।

फिर कुछ समय बाद में जीरो को एक बिंदु का आकार दिया गया और इस का नाम ” पूज्यम ” रखा गया था।

फिर लगभग 8वि शताब्दी में जीरो जब अरब देशों में प्रचलित हुआ, तब कुछ अरब देश के गणितज्ञों ने इसे अरबी भाषा में ‘ सिफ्र ’ का नाम दिया।

फिर उसके बाद जीरो का नाम ” सिफ्र ” से बदल कर के उर्दू भाषा में ‘ सिफर ’ का नाम दिया गया था। इन सभी शब्दों का मतलब था ” कुछ भी नहीं ” यानी कि खाली था।

फिर कुछ समय बाद में 12वि शताब्दी में जब जीरो का प्रचलन यूरोप और उन के आस पास के कुछ देशों में पहुंचा तब इटली के एक गणित विशेषज्ञ जिनका नाम फिबोनैकी था।

उन्होंने ने जीरो का नाम ” जफीरम ” शब्द का इस्तेमाल अपने लिखे पुस्तक में किया था।

और उसके बाद में इटली के दूसरे तरफ वेनिटियन में जीरो को ” जीरो ” कहा जाने लगा और यही से खाली जगह के संख्या में जीरो नाम का एक अलग आकार दिया गया था।

जीरो में आर्यभट्ट का क्या योगदान है ?

दोस्तों, कई सारे लोग तो अब भी यह मानते हैं, कि जीरो का आविष्कार आर्यभट्ट ने किया है, हालांकि यह बात बिल्कुल गलत है, क्योंकि जीरो का आविष्कार सर्वप्रथम महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने किया था।

आर्यभट्ट प्राचीन के प्रसिद्ध गणितज्ञ और ज्योतिष थे।

आमतौर पर आर्यभट्ट ने यह साबित किया था, कि गणित के दुनिया में जीरो एक ऐसी संख्या है, जिसका कोई मान नहीं है, लेकिन फिर भी यह महत्वपूर्ण संख्या 10 संख्याओं के प्रतीक रूप में प्रतिनिधित्व होता है। दोस्तों, आर्यभट्ट ने सिर्फ यह पुष्टि ही की थी।

मगर उसके अलावा उन्होंने जीरो के संख्या होने का कोई साबुत या समाधान के बारे में जिक्र नही किया था।

आर्यभट्ट के वर्णन से प्रेरित होकर ही बाद में गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने जीरो संख्या का चुनाव किया, इसलिए आर्यभट्ट को इस शून्य के आविष्कार में जीरो का जनक कहा जाता है।

Conclusion :

दोस्तों, आशा करता हूं, कि आपको मेरा यह लेख बेहद पसंद आया होगा और आप इस लेख के मदद से जान चुके होंगे, कि ( 0 Ki Khoj Kisne Ki ) जीरो की खोज किसने की थी ?

हमने इस लेख में सरल से सरल भाषा का उपयोग करके आप को जीरो से जुड़ी जानकारी देने की कोशिश की थी। और मुझे आशा है, कि आप भी मेरे इस लेख को पढ़ करके अवश्य संतुष्ट होंगे।

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